ये दोनों मन्त्र कलश स्थापन में विनियोग किये जाते हैं |
ओषधयःसंवदन्ते सोमेन सह राज्ञा |
यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तं राजन्पारयामसि || ( ऋ.वे.सं.१०.९७.२२, वाषं.१२.९६ )
इस मन्त्र से धान ( चावल ) का पुंज किया जाता है जिसके ऊपर कलश की स्थापना होती है |
मन्त्रार्थ - ओषधियां अपने स्वामी सोम से कहती हैं - हे राजन् ,जिस रोगी की चिकित्सा में वैद्य द्वारा हमारा उपयोग किया जायेगा उस रोगी की हम रक्षा करेंगे |
आ कलशेषु धावति पवित्रे परिषिच्यते |
उक्थैर्यज्ञेषु वर्धते || ( ऋ.वे.सं.९.१७.४ )
इस मन्त्र से धान पुंज के ऊपर कलश रखा जाता है |
मन्त्रार्थ - यह सोमरस छलनी से छाने जाने पर कलश की ओर प्रवाह करता है और स्तुतियों से वृद्धि को प्राप्त करता है |