यत्र दिङ्नियमो न स्याज्जपहोमादिकर्मसु |
तिस्रस्तत्र दिशः प्रोक्ता ऐन्द्री सौम्याऽपराजिताः ||
ऐन्द्री - पूर्व
सौम्या - उत्तर
अपराजिता - ऐशानी
जप होमादियों में जहां दिशा सूचित न किया हो वहां पूर्व ,उत्तर या ऐशानी दिशा ग्रहण करना चाहिये |