Thursday, December 3, 2015

मन्त्रार्थ परिचय

अ॒हं वृ॒क्षस्य॒ रेरि॑वा | की॒र्तिः पृ॒ष्ठं गि॒रेरि॑व | ऊर्ध्वप॑वित्रो वा॒जिनी॑व स्व॒मृत॑मस्मि | द्रवि॑ण॒ँ सव॑र्चसम् | सुमेधा अ॑मृतो॒क्षितः | इति त्रिशङ्कोर्वेदा॑नुव॒चनम् ||

त्रिशङ्कु .ॠषी ने इस मन्त्र को वेदाध्ययन रहित लोगों के लिये  ब्रह्मयज्ञ के स्थान में बताया है |

मैं अपनी वैराग्यरूपी शस्त्र से संसार रूपी वृक्ष को काटनेवाला हूँ | मेरी कीर्ति पर्वतशिखर जैसे ऊँची हो | मैं सूर्य जैसे शुद्ध और अमृतमय बनूँ | मैं प्रकाशमान्,ज्ञान से धनवान्,मेधावी और ब्रह्मानन्द में भीगा हुआ बनूँ |