Monday, January 4, 2016

जपादि में दिशा का विचार

यत्र दिङ्नियमो न स्याज्जपहोमादिकर्मसु |
तिस्रस्तत्र दिशः प्रोक्ता ऐन्द्री सौम्याऽपराजिताः ||

ऐन्द्री  - पूर्व

सौम्या - उत्तर

अपराजिता - ऐशानी

जप होमादियों में जहां दिशा सूचित न किय‌ा हो वहां पूर्व ,उत्तर या ऐशानी दिशा ग्रहण करना चाहिये |

Saturday, January 2, 2016

मन्त्रार्थ परिचय


ये दोनों मन्त्र कलश स्थापन में विनियोग किये जाते हैं |

ओषधयःसंवदन्ते सोमेन सह राज्ञा |
यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तं राजन्पारयामसि || ( ऋ.वे.सं.१०.९७.२२, वाषं.१२.९६ )

इस मन्त्र से धान ( चावल ) का पुंज किया जाता है जिसके ऊपर कलश की स्थापना होती है |

मन्त्रार्थ - ओषधियां अपने स्वामी सोम से कहती हैं - हे राजन् ,जिस रोगी की चिकित्सा में वैद्य द्वार‌ा हमारा उपयोग किया जायेगा उस रोगी की हम रक्षा करेंगे |

आ कलशेषु धावति पवित्रे परिषिच्यते |

उक्थैर्यज्ञेषु वर्धते || ( ऋ.वे.सं.९.१७.४ )

इस मन्त्र से धान पुंज के ऊपर कलश रखा जाता है |

मन्त्रार्थ -  यह सोमरस छलनी से छाने जाने पर कलश की ओर प्रवाह करता है और स्तुतियों  से वृद्धि को प्राप्त करता  है |