यत्र दिङ्नियमो न स्याज्जपहोमादिकर्मसु |
तिस्रस्तत्र दिशः प्रोक्ता ऐन्द्री सौम्याऽपराजिताः ||
ऐन्द्री - पूर्व
सौम्या - उत्तर
अपराजिता - ऐशानी
जप होमादियों में जहां दिशा सूचित न किया हो वहां पूर्व ,उत्तर या ऐशानी दिशा ग्रहण करना चाहिये |
Monday, January 4, 2016
Saturday, January 2, 2016
मन्त्रार्थ परिचय
ये दोनों मन्त्र कलश स्थापन में विनियोग किये जाते हैं |
ओषधयःसंवदन्ते सोमेन सह राज्ञा |
यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तं राजन्पारयामसि || ( ऋ.वे.सं.१०.९७.२२, वाषं.१२.९६ )
इस मन्त्र से धान ( चावल ) का पुंज किया जाता है जिसके ऊपर कलश की स्थापना होती है |
मन्त्रार्थ - ओषधियां अपने स्वामी सोम से कहती हैं - हे राजन् ,जिस रोगी की चिकित्सा में वैद्य द्वारा हमारा उपयोग किया जायेगा उस रोगी की हम रक्षा करेंगे |
आ कलशेषु धावति पवित्रे परिषिच्यते |
उक्थैर्यज्ञेषु वर्धते || ( ऋ.वे.सं.९.१७.४ )
इस मन्त्र से धान पुंज के ऊपर कलश रखा जाता है |
मन्त्रार्थ - यह सोमरस छलनी से छाने जाने पर कलश की ओर प्रवाह करता है और स्तुतियों से वृद्धि को प्राप्त करता है |
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