जब देव यज्ञ करने लगे तो राक्षसों ने उनको रोका | तब देवों ने जल नामक वज्र को खोज निकाला | जल जहाँ भी जाता है गड्ढा कर देता है,जिस चीज़ पर आक्रमण करता है उसका विनाश होता है - इसलिये जल को वज्र मानते हैं | अन्यत्र भी कहा गया है कि सन्ध्यावन्दन करते समय गायत्री मन्त्र बोलकर ब्राह्मण जिस जल को आकाश की ओर छोडता है वह जल वज्र बनकर मन्देहा नामवाले राक्षसों को अरुणद्वीप में फेंक देता है | इसलिये यज्ञ की रक्षा के लिये जल को रखा जाता है |
दूसरी बात - जल स्त्री और अग्नि पुरुष है | हवन कुण्ड उनका घर है | यज्ञ का फल इनके मिलन से उत्पन्न सन्तान है | इसलिये जल रखना अवश्य होता है | अग्नि और जल के बीच मे होकर निकलना मना है जिससे उनके सहवास में विघ्न होता है |
दूसरी बात - जल स्त्री और अग्नि पुरुष है | हवन कुण्ड उनका घर है | यज्ञ का फल इनके मिलन से उत्पन्न सन्तान है | इसलिये जल रखना अवश्य होता है | अग्नि और जल के बीच मे होकर निकलना मना है जिससे उनके सहवास में विघ्न होता है |