Friday, November 13, 2015

शान्तिमन्त्रार्थ परिचय

नमो वाचे य‌ा चोदिता या चानुदिता तस्यै वाचे नमो नमो
वाचे नमो वाचस्पतये  नम ऋषिभ्यो मन्त्रकृद्भ्यो मन्त्रपतिभ्यो
मा मामृषयो मन्त्रकृतो मन्त्रपतयः | परादुर्माऽहमृषीन्मन्त्रकृतो
मन्त्रपतीन्परादाम् ||

नमो वाचे - वाणी के लिेये नमस्कार

या च उदिता या च ‌अनुदिता - जो वाणी प‌हले प्रयोग की गयी हो वह उदिता वाणी, जिसका प्रयोग न प‌हले हुआ गो वह अनुदिता वाणी |
दोनों के लिये नमस्कार |

नमो वाचस्पतये - वाणी के स्वामी बृहस्पति के लिये नमस्कार |

नम ऋषिभ्यो मन्त्रकृद्भ्यः -  मन्त्रद्रष्टा ऋषियों के लिये नमस्कार |

मन्त्रपतिभ्यः - मन्त्रों के रक्षक ऋषियों को नमस्कारः |

अहं मन्त्रकृतः ऋषीन्  मन्त्रपतीन् मा परादाम् - मैं मन्त्रद्रष्टा ऋषियों और मन्त्र के स्वामियों की निन्दा न क‌रूँ |

मन्त्रकृतः ऋषयः मन्त्रपतयः म‌ां न प‌रादुः - वे भी मेरी अवज्ञा न करें |

वैश्वदेवीं वाचमुद्यासं शिवामदस्तां जुष्टां देवेभ्यः -

वाचं उद्यासम् - मैं इस प्रकार की वाणी को बोलनेवाला हूँ जो -

अदस्तां जुष्टां देवेभ्यः - संपूर्ण देव‌ताओं के लिये प्रिय

शिवाम् - देवताओं को सुख देनेवाली और -

वैश्वदेवीम् - स‌ारे देवताओं से सम्बन्धित हो |

शर्म मे द्यौः शर्म पृथिवी शर्म विश्वमिदं जगत् |
शर्म चन्द्रश्च सूर्यश्च शर्म ब्रह्मप्रजापती ||

शर्म मे द्यौः - स्वर्गलोक मे स्थित देव मेरे लिये सुखकारी होवे |

पृथिवी,सम्पूर्ण विश्व ,चन्द्र, सूर्य,ब्रह्म और प्रजापती मेरे लिये सुखकारी होवे |

भूतं वदिष्ये भुवनं वदिष्ये तेजो वदिष्ये यशो वदिष्ये तपो वदिष्ये ब्रह्म वदिष्ये सत्यं वदिष्ये -

पञ्चमहाभूत,पृथिव्यादि लोक, तेज,व्रतादि तपस्या,स्वाध्याय रूपी ब्रह्म,सत्य - ये सारे मेरे अनुकूल ब‌नें ऐसे प्रार्थना क‌रता हूँ |

तस्मा अहमिदमुपस्तरणमुपस्तृण उपस्तरणं मे प्रजायै पशूनां
भूयादुपस्तरणमहं प्रजायै पशूनां भूयासम् |

तस्मै - पूर्वोक्त वस्तुओं की प्राप्ति के लिये

अहं इदमुपस्तरणं उपस्तृणे - इस कर्म को को करता हूँ

मे प्रजायै पशूनां उपस्तरणं भूयात् - मेरे सन्तान और पशुओं को आधार मिल जावे

अहं प्रजायै पशूनां उपस्तरणं भूयासम् - मैं इनके लिये आधार बन जाऊँ |

प्राणापानौ मृत्योर्मा पातं प्राणापानौ मा मा हासिष्टम् -

प्राण और अपान मृत्यु से मेरी रक्षा करें
प्राण और अपाम मुझे न झोडें

मधु मनिष्ये मधु जनिष्ये मधु वक्ष्यामि मधु वदिष्यामि
मधुमतीं देवेभ्यो वाचमुद्यासं शुश्रूषेण्यां मनुष्येभ्यस्तं मा
देव‌ा अवन्तु शोभायै पितरोऽनुमदन्तु ||

मधु मनिष्ये - मधुर मन से संकल्प करता हूँ
मधु जनिष्ये - मधुर कर्म क‌ा प्रारम्भ करता हूँ
मधु वक्ष्यामि - मधुर रूप से उसका निर्वहण करता हूँ
मधु वदिष्यामि - मधुर मन्त्र बोलता हूँ

देवेभ्यो मधुमतीं मनुष्येभ्यः शुश्रूषेण्यां वाचं उद्यासम् - देवों के लिये अतिप्रिय और मनुष्यों से उपलक्षित पितरों के लिये भी प्रिय वाणी को बोलता हूँ |

शोभायै - शुभ फल के लिये

देवा अवन्तु - देव हम‌ारी रक्षा करें

पितरोऽनुमदन्तु - इस बात को पितर भी ज‌ानें ,वे भी हमारी रक्षा करें |